Geeta shlok on Karma

Geeta shlok on Karma

Here are some powerful Geeta shlokas on Karma that encapsulate the wisdom of Lord Krishna’s teachings about duty, action, and responsibility.


भगवद गीता के कर्म पर श्लोक

    अध्याय 2, श्लोक 47

    कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

    हिंदी अर्थ:
    तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में नहीं। इसलिए, कर्मफल की इच्छा मत करो और निष्क्रियता में भी आसक्त मत हो।


    अध्याय 3, श्लोक 8

    नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
    शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥

    हिंदी अर्थ:
    तुम्हें अपने नियत कर्म (कर्तव्य) अवश्य करना चाहिए, क्योंकि कर्म करना अकर्म (निष्क्रियता) से श्रेष्ठ है। बिना कर्म किए तो शरीर का जीवन-यापन भी संभव नहीं है।


    अध्याय 3, श्लोक 9

    यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
    तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर॥

    हिंदी अर्थ:
    कर्म केवल यज्ञ (सामाजिक और ईश्वरीय कल्याण) के लिए किया जाना चाहिए, अन्यथा कर्म से बंधन उत्पन्न होता है। इसलिए, हे अर्जुन, आसक्ति रहित होकर अपने कर्तव्य का पालन करो।


    अध्याय 3, श्लोक 19

    तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
    असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः॥

    हिंदी अर्थ:
    इसलिए, आसक्ति को त्यागकर अपने कर्तव्य को नित्य करते रहो। आसक्ति रहित होकर कर्म करने से मनुष्य परमात्मा को प्राप्त करता है।


    अध्याय 4, श्लोक 18

    कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।
    स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्॥

    हिंदी अर्थ:
    जो व्यक्ति कर्म में अकर्म (निष्क्रियता) और अकर्म में कर्म को देखता है, वही मनुष्यों में बुद्धिमान है। वह योगी अपने सभी कर्मों को सही प्रकार से करता है।


    अध्याय 6, श्लोक 1

    अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
    स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥

    हिंदी अर्थ:
    जो व्यक्ति कर्म के फल पर निर्भर नहीं करता और केवल कर्तव्य का पालन करता है, वही सच्चा संन्यासी और योगी है, न कि जो केवल अग्निहीन और कर्मरहित है।


    अध्याय 18, श्लोक 9

    कार्यं इत्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।
    सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः॥

    हिंदी अर्थ:
    हे अर्जुन! जो व्यक्ति नियत कर्म को “कर्तव्य” समझकर करता है, फल की आसक्ति और इच्छा को त्यागकर, उसका त्याग सात्त्विक कहलाता है।