Geeta shlok on Karma
Here are some powerful Geeta shlokas on Karma that encapsulate the wisdom of Lord Krishna’s teachings about duty, action, and responsibility.
भगवद गीता के कर्म पर श्लोक
- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।
- (अध्याय 2, श्लोक 47)
- अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, न कि उसके फलों में। इसलिए कर्म का कारण बनो, लेकिन उसके परिणाम में आसक्त मत हो। निष्काम कर्म के मार्ग पर चलो।
- योग: कर्मसु कौशलम्।
- (अध्याय 2, श्लोक 50)
- अर्थ: योग का वास्तविक अर्थ है कुशलता से कर्म करना। यानी कर्म में दक्षता और निष्पक्षता बनाए रखते हुए उसे अर्पित करना ही असली योग है।
- तस्मात् असक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।
- (अध्याय 3, श्लोक 19)
- अर्थ: इसलिए बिना आसक्ति के अपने कर्तव्यों का पालन करो। जब व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है, तब वह परम लक्ष्यों को प्राप्त करता है।
- न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्। कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः।।
- (अध्याय 3, श्लोक 5)
- अर्थ: कोई भी व्यक्ति एक पल के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता, क्योंकि प्रकृति के गुणों के प्रभाव से हर कोई कर्म करने के लिए विवश है।
- यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः। समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।
- (अध्याय 4, श्लोक 22)
- अर्थ: जो व्यक्ति संतोष से कर्म करता है, सफलता-असफलता में सम रहता है, और बिना ईर्ष्या के कर्म करता है, वह कर्म करते हुए भी कर्मबंधन में नहीं पड़ता।